शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

International Day of Sign Languages 2022: जानें अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस का उद्देश्य

 हर साल, 23 ​​सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस (International Day of Sign Languages) के रूप में मनाया जाता है। 23 सितंबर के दिन पुरे देश में विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस मनाया जाता है। दुनिया भर में ऐसे कई लोग है, जो बोल या सुन नहीं सकते है। वह अपनी बात करने के लिए अपने हाथों से चेहरे के हाव-भाव से बात करते है। इस भाषा को सांकेतिक भाषा (Sign Language) कहा जाता है।



हर साल सांकेतिक भाषा दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को साइन लैंग्वेज के बारे में जागरूकता बढ़ाना और सांकेतिक भाषा को मजबूत बनाना है। इसलिए सितंबर का अंतिम पूरा सप्ताह अंतरराष्ट्रीय बधिरता सप्ताह (International Week of the Deaf) के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस 2018 से मनाया जा रहा है। इस दिवस का मुख्य काम लोगों के बीच संकेतिक भाषा के प्रति जागरूक करना है।


इंटरनेशनल डे ऑफ साइन लैंग्वेज: थीम

हर साल एक नई थीम या विचार के साथ इंटरनेशनल डे ऑफ साइनल लैंग्वेज डे मनाया जाता है। इस साल भी नई थीम के साथ साइन लैंग्वेज डे सेलिब्रेट किया जा रहा है। इस साल की थीम है ‘सांकेतिक भाषाएं हमें एकजुट करती है।


अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस का इतिहास:

साल 1951 में 23 सितंबर को विश्व फेडरेशन ऑफ डेफ (World Federation of the Deaf) की याद में स्थापना की गई थी, जो जो बधिर लोगों के 135 राष्ट्रीय संघों का एक संघ है, जो विश्भवर में लगभग 70 मिलियन बधिर लोगों के मानवाधिकारों को बढ़ावा देने काम करता है। बधिरों का अंतर्राष्ट्रीय सप्ताह पहली बार सितंबर 1958 में मनाया गया था और तब से यह बधिर एकता के एक वैश्विक आंदोलन के रूप में विकसित हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस पहली बार साल 2018 में अंतरराष्ट्रीय बधिरता सप्ताह के भाग के रूप में मनाया गया। यह दिवस मनाने का उद्देश्य बधिर लोगों को उनके जीवन में आने वाले रोजमर्रा के विषयों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।


बधिरों का कठिन और संघर्षपूर्ण जीवन

इस दिवस का मुख्य काम लोगों के बीच संकेतिक भाषा के प्रति जागरूक करना है. दुनिया में करीब 7.2 करोड़ लोग बधिर हैं लेकिन आम जनता इन लोगों के लिए सांकेतिक भाषा को नहीं समझती है इस वजह से बधिर लोगों का दैनिक संघर्ष और कठिन हो जाता है. इसीलिए इस दिवस का मकसद लोगों को प्रोत्साहित भी करना है कि वे कम से कम सांकेतिक भाषा की आधारभूत जानकारी तो जरूर रखें.


काफी समय पहले भी उपयोग में थीं ऐसी भाषाएं

वैसे तो सांकेतिक भाषा का उपयोग 500 ईसा पूर्व से भी पहले से होने के प्रमाण मिलते हैं, लेकिन आधुनिक सांकेतिक भाषा की सबसे पहली वर्णमाला फ्रांस के चार्ल्स –मिशेल डि एलोपे ने प्राकाशित की थी. यही वर्णमाला आज तक उपयोग में लाई जा रही है. 1755 में एबे डि एलोपे ने पेरिस में बधिरों के लिए पहले स्कूल खोला था और लॉरेंट क्लेरिक इसके मशहूर स्नातक के रूप में पहचाने गए थे

23 सितंबर ही क्योंक्लेरिक ने अमेरिका में जाकर 1817 में थामस हॉपकिंस गैलॉडेट के साथ पहले बधिर स्कूल खोला था. इसके बाद 1857 में गैलॉडेट के बेटे एडवर्ड माइनर गैलॉडेट ने वॉशिंगटन डीसी में बधिरों के लिए स्कूल खोला जो 1864 में राष्ट्रीय बधिर कॉलेज बन गया. इसके बाद विश्व बधिर महासंघ की स्थापना 23 सितंबर 1951 में हुई. साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने फैसला किया कि हर साल 23 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस मनाया जाएगा और 2018 से इसे मनाया जा रहा है.

नहीं सीखते सांकेतिक भाषा

राहत की बात यह है कि बहुत सारे संकेत और इशारे आधारभूत संचार के लिए सभी सांकेतिक भाषाओं में समान ही हैं. इन भाषाओं में स्थानीय बोलचाल के तरीकों का भी असर होता हैऔर इससे स्थानीय स्तर पर उन्हें उपयोग में लाना भी आसान हो जाता है, लेकिन फिर भी चूंकि अधिकांश बधिर मूक भी होते हैं, फिर भी बहुत सारे मूकबधिर भी सांकेतिक भाषा को नहीं सीखते हैं.

दस में से एक व्यक्ति

7.2 करोड़ बधिरों में से 4.3 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें अपनी सुनने की क्षमता गंवाने के कारण पुनर्वास की जरूरत है और साल 2050 तक ऐसे लोगो की संख्या सात करोड़ से ज्यादा हो जाएगी. यानि हर दस में से एक व्यक्ति के साथ सुनने की समस्या हो जाएगी. इसीलिए यह बहुत जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग सांकेतिक भाषा को समझें क्यों बधिरों के पास बोलने वाली भाषा सीखने का विकल्प नहीं है.



यही वजह है कि इस साल विश्व बधिर महासंघ ने“साइन लैंग्वेज यूनाइट अस” यानि “सांकेतिक भाषा हमें एक करती है” को इस दिवस की थीम रखा है. यह भाषा लोगों को जोड़ने का काम करने के साथ उनकी संवेदनशीलता को भी जागृत और परीष्कृत करने का काम करेगी. सरकारों के ,साथ सामाजिक स्तर पर भी किए गए प्रयास इस दिशा में सार्थक हो सकती है और सांकेतिक भाषाओं को वैश्विक एकता के लिए एक उपकरण के तौर पर उपयोग में ला सकते हैं.



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