परीभाषा
जीव विज्ञान शब्द ग्रीक शब्द / बायोस / अर्थ / जीवन / और / लोगो / अर्थ / अध्ययन / से लिया गया है और इसे जीवन और जीवों के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया गया है। एक जीव एक जीवित इकाई है जिसमें एक कोशिका होती है जैसे बैक्टीरिया, या कई कोशिकाएँ जैसे जानवर, पौधे और कवक।
अर्थ
जीवविज्ञान (Biology) प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। इस विज्ञान में हम जीवों की संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में पढ़ते हैं।
जीवविज्ञान (Biology) प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। [1] इस विज्ञान में हम जीवों की संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में पढ़ते हैं। आधुनिक जीव विज्ञान एक बहुत विस्तृत विज्ञान है, जिसकी कई शाखाएँ हैं।
बायलोजी' (जीवविज्ञान) शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क और ट्रविरेनस(Trivirenus)नाम के वैज्ञानिकों ने १८०१(18[2]01) ई० में किया।
जिन वस्तुओं की उत्पत्ति किसी विशेष अकृत्रिम जातीय प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है, 'जीव' कहलाती हैं। इनका एक परिमित जीवनचक्र होता है। हम सभी जीव हैं। जीवों में कुछ मौलिक प्रक्रियाऐं होती हैं:
(1) पोषण : इसके अन्तर्गत सभी जीव विशेष पदार्थों के अधिग्रहण से अपने लिए यांत्रिक ऊर्जा प्राप्त करतें हैं।
(2) श्वसन : इसमें प्राणी महत्वपूर्ण गैसोँ का परिवहन करता है।
(3) संवेदनशीलता : जीवोँ में वाह्य अनुक्रियाओँ के प्रति संवेदनशीलता पायी जाती है।
(4) प्रजनन : यह जीवोँ में पाया जानें वाला अनोखा एँव अतिमहत्वपूर्ण प्रक्रिया है। प्रजनन से जीव अपने ही तरह की सन्तान उत्पन्न कर सकता है तथा जैविक अस्तित्व को पुष्टता प्रदान करता है। ड 5 ) प्रकाश संश्लेषण - समस्त हरे पौधे सूर्य के प्रकश की उपस्थिति में वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड व जमीन से खनिज लवण के सहायता अपना भोजन स्वंय बनाते है ।
शाखा
जीवविज्ञान की शाखाएँ
जीवविज्ञान का दायरा व्यापक है, और इसे कई विषयों में विभाजित किया गया है। यहां एसएससी, यूपीएससी, राज्य सेवाओं, रेलवे और बैंकिंग परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाने वाले जीव विज्ञान की सभी शाखाओं की एक सूची है। आप पूरी सूची को विस्तार से पढ़ें, और अपनी आने वाली परीक्षाओं में जीव विज्ञान और उसकी शाखाओं से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम होने के लिए उन्हें याद करने की कोशिश करें।
एग्रोस्टोलॉजी – घास का अध्ययन।
कृषि – फसल का उत्पादन।
एग्रोनॉमी– मृदा प्रबंधन और फसल का उत्पादन।
ऑलोमेट्री – शरीर के आकार के आकार, शरीर रचना विज्ञान, शरीर विज्ञान और अंत में व्यवहार के संबंध का अध्ययन।
एन्थोलॉजी – फूलों का अध्ययन।
एनाटॉमी – विच्छेदन द्वारा प्रकट एक जीव की आंतरिक संरचना का अध्ययन।
पुरातत्व – पुरातात्विक सामग्री के माध्यम से प्राचीन काल के जीव विज्ञान का अध्ययन।
मानव विज्ञान – मनुष्य का विज्ञान जिसमें उसका शारीरिक, मानसिक संविधान, सांस्कृतिक विकास और वर्तमान और अतीत की सामाजिक परिस्थितियाँ शामिल हैं।
कृषिविज्ञान – आदिम मनुष्य के रीति-रिवाजों का अध्ययन।
आर्थ्रोलॉजी – जोड़ों का अध्ययन।
एरोबायोलॉजी – अन्य उड़ने वाली वस्तुओं के संबंध में उड़ान जीवों का अध्ययन।
बीओसीबेरनेटिक्स – जैव विज्ञान के लिए साइबरनेटिक्स के अनुप्रयोग।
जीवाणु विज्ञान – जीवाणुओं का अध्ययन।
बायोफिज़िक्स – जीवित प्रणालियों के भौतिक पहलुओं का अध्ययन।
बायोकेमिस्ट्री – शरीर और रासायनिक प्रतिक्रियाओं को बनाने वाले रसायनों का अध्ययन।
जैव प्रौद्योगिकी – औद्योगिक प्रक्रियाओं में जीवित जीवों का उपयोग।
बायोग्राफी – जीवों के भौगोलिक वितरण का अध्ययन।
कोशिका जीवविज्ञान – कोशिकाओं के संरचना, कार्यों, प्रजनन और जीवन चक्र का अध्ययन।
क्रोनोबायोलॉजी – जीवित जीवों में समय-निर्भर घटनाओं का अध्ययन।
क्रानियोलॉजी – खोपड़ी का अध्ययन।
क्रायोबायोलॉजी – जीवित जीवों पर कम तापमान के प्रभाव का अध्ययन।
साइटोलॉजी – कोशिकाओं की विस्तृत संरचना का अध्ययन।
कार्डियोलॉजी – दिल और उसके कामकाज का अध्ययन।
डेंड्रोलॉजी – झाड़ियों और पेड़ों का अध्ययन।
पारिस्थितिकी – जीवों और पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्ययन।
ईडोनॉमी – एक जीव की बाहरी उपस्थिति का अध्ययन।
एंडोक्रिनोलॉजी – एंडोक्राइन ग्रंथियों और उनके हार्मोन का अध्ययन।
नैतिकता – जानवरों के व्यवहार का अध्ययन।
नृवंशविज्ञान – विभिन्न मानव संस्कृतियों द्वारा पौधों और जानवरों का इलाज या उपयोग करने के तरीके का अध्ययन।
विकास – जीवन की उत्पत्ति, भिन्नता और नई प्रजातियों के गठन का अध्ययन।
एटियलजि – रोग के प्रेरक एजेंट का अध्ययन।
एन्टोमोलॉजी – कीटों का अध्ययन।
एक्सोबायोलॉजी – अंतरिक्ष में जीवन की संभावना का अध्ययन।
एस्थिसियोलॉजी – संवेदना का वैज्ञानिक अध्ययन।
फूलों की खेती – फूलों की पैदावार की खेती।
फोरेंसिक जीवविज्ञान – कानून प्रवर्तन के लिए जीव विज्ञान के आवेदन।
किण्वन – अधूरा ऑक्सीकरण की प्रक्रिया जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में रोगाणुओं और अन्य कोशिकाओं में होती है, जिससे एथिल अल्कोहल का निर्माण होता है।
वानिकी – वन का विकास और प्रबंधन।
खाद्य प्रौद्योगिकी – खाद्य की वैज्ञानिक प्रसंस्करण, संरक्षण, भंडारण और परिवहन।
मत्स्य – मछलियों का पालन, प्रजनन, पालन और विपणन।
फोरेंसिक विज्ञान – नागरिकों के विभिन्न तथ्यों की पहचान के लिए विज्ञान का अनुप्रयोग।
आनुवांशिकी – आनुवंशिकता और विविधताओं का अध्ययन।
वृद्धि – एक जीव के वजन, मात्रा और आकार में स्थायी वृद्धि।
जेनेटिक इंजीनियरिंग – जीव को बेहतर बनाने के लिए जीन का हेरफेर।
जेरोन्टोलॉजी – उम्र बढ़ने के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, संज्ञानात्मक और जैविक पहलुओं का अध्ययन।
स्त्री रोग – मादा प्रजनन अंग का अध्ययन।
गैस्ट्रोएंटरोलॉजी – एलिमेंटरी कैनाल या पेट, आंत और उनकी बीमारी का अध्ययन।
हेमेटोलॉजी – रक्त और इसके कारण होने वाले रोग का अध्ययन।
हेपेटोलॉजी – लिवर का अध्ययन।
स्वच्छता – स्वास्थ्य का ध्यान रखने वाला विज्ञान।
हेल्मिनथोलॉजी – परजीवी कीड़े का अध्ययन।
हाइड्रोपोनिक्स-पानी में मिट्टी के बिना बढ़ते पौधे के पोषक तत्व जिसमें पोषक तत्व होते हैं।
हाइपोटोनिक – दो समाधानों में जो कम विलेय सांद्रता रखते हैं उन्हें हाइपोटोनिक कहा जाता है।
हेरप्टोलॉजी-सरीसृप सरीसृप।
हाइड्रोबायोलॉजी – पानी में जीवन और जीवन प्रक्रियाओं का विज्ञान।
इम्यूनोलॉजी – विशिष्ट रोगों के लिए प्राकृतिक या अधिग्रहित प्रतिरोध का अध्ययन।
इचथोलॉजी – मछली और इसकी संस्कृति का अध्ययन।
क्रायोलॉजी – नाभिक का अध्ययन।
कटोलॉजी – मानव सौंदर्य का अध्ययन।
काइन्सियोलॉजी – मांसपेशियों के आंदोलनों का अध्ययन।
कोनोलॉजी – स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों के संबंध में धूल का अध्ययन।
मास्टोलॉजी – स्तनों का अध्ययन।
आकृति विज्ञान – रूप और संरचना का अध्ययन।
मोलोग्य – मांसपेशियों का अध्ययन।
माइकोलॉजी – कवक का अध्ययन।
माइक्रोबायोलॉजी – बैक्टीरिया और वायरस जैसे
कोनोलॉजी – स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों के संबंध में धूल का अध्ययन।
मास्टोलॉजी – स्तनों का अध्ययन।
आकृति विज्ञान – रूप और संरचना का अध्ययन।
मोलोग्य – मांसपेशियों का अध्ययन।
माइकोलॉजी – कवक का अध्ययन।
माइक्रोबायोलॉजी – बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्मजीवों का अध्ययन।
आणविक जीवविज्ञान – आणविक स्तर पर रहने वाले रसायनों का अध्ययन
स्तनधारी – स्तनधारियों का अध्ययन।
मैमोग्राफी – विज्ञान की शाखा जो स्तन कैंसर से संबंधित है।
मेकेनोबायोलॉजी – बायोलॉजी एंड इंजीनियरिंग के इंटरफेस का अध्ययन।
नवजात विज्ञान – 2 महीने की उम्र तक नवजात शिशु का अध्ययन।
नेफ्रोलॉजी – किडनी का अध्ययन।
न्यूरोलॉजी – न्यूरॉन्स और तंत्रिका के छल्ले का अध्ययन।
नोसोलॉजी – रोगों का वर्गीकरण।
ओस्टियोलॉजी – कंकाल प्रणाली का अध्ययन।
ओडोन्टोलॉजी – दांत का अध्ययन।
जीव – विभिन्न अंगों का अध्ययन।
प्रसूति – प्रसव से पहले, दौरान और बाद में गर्भवती महिलाओं की देखभाल से।
जीव विज्ञान की शाखाओं पर पूछे गए जीके प्रश्न के उदाहरण अक्सर पूछे जाते हैं
जीव विज्ञान की निम्नलिखित शाखाओं में से कौन सी जीवित जीवों पर विकिरण के प्रभाव से संबंधित है?
क्रोबिओलोजी
क्रोगेनिकलोज
एक्टिनोबियोलॉजी
एरोबिओलॉजी
जीव विज्ञान की निम्नलिखित में से कौन सी शाखा हड्डियों का जोड़ है?
ओतेकोलॉजी
अरनोलॉजी
अर्थ्रोलॉजी
एंथ्रोपोलॉजी
पर्यावरण में सुधार के द्वारा मानव जाति के सुधार का अध्ययन किसके नाम से जाना जाता है?
Euthenics
युजनिक्स
Euphenics
एटियलॉजी
विज्ञानिक नाम
.मनुष्य-होमो सैपियंस
2.मेढक-राना टिग्रिना
3.बिल्ली-फेलिस डोमेस्टिका
4.कुत्ता-कैनिस फैमिलियर्स
5.गाय-बॉस इंडिकस
6.भैंस-बुबालस बुबालिस
7.बैल-बॉस प्रिमिजिनियस टारस
8.बकरी-केप्टा हिटमस
9.भेड़-ओवीज अराइज
10.सुअर-सुसस्फ्रोका डोमेस्टिका
11.शेर-पैँथरा लियो
12.बाघ-पैँथरा टाइग्रिस
13.चीता-पैँथरा पार्डुस
14.भालू-उर्सुस मैटिटिमस कार्नीवेरा
15.खरगोश-ऑरिक्टोलेगस कुनिकुलस
16.हिरण-सर्वस एलाफस
17.ऊँट-कैमेलस डोमेडेरियस
18.लोमडी-कैनीडे
19.लंगुर-होमिनोडिया
20.बारहसिँघा-रुसर्वस डूवासेली
22.आम-मैग्नीफेरा इंडिका
23.धान-औरिजया सैटिवाट
24.गेहूँ-ट्रिक्टिकम एस्टिवियम
25.मटर-पिसम सेटिवियम
26.सरसोँ-ब्रेसिका कम्पेस्टरीज
27.मोर-पावो क्रिस्टेसस
28.हाथी-एफिलास इंडिका
29.डॉल्फिन-प्लाटेनिस्टा गैँकेटिका
30.कमल-नेलंबो न्यूसिफेरा गार्टन
31.बरगद-फाइकस बेँधालेँसिस
32.घोड़ा-ईक्वस कैबेलस
33.गन्ना-सुगरेन्स औफिसीनेरम
34.प्याज-ऑलियम सिपिया
35.कपास-गैसीपीयम
36.मुंगफली-एरैकिस हाइजोपिया
33.गन्ना-सुगरेन्स औफिसीनेरम
34.प्याज-ऑलियम सिपिया
35.कपास-गैसीपीयम
36.मुंगफली-एरैकिस हाइजोपिया
37.कॉफी-कॉफिया अरेबिका
38.चाय-थिया साइनेनिसस
39.अंगुर-विटियस
40.हल्दी-कुरकुमा लोँगा
41.मक्का-जिया मेज
42.टमाटर-लाइकोप्रेसिकन एस्कुलेँटम
43.नारियल-कोको न्यूसीफेरा
44.सेब-मेलस प्यूमिया/डोमेस्टिका
45.नाशपाती-पाइरस क्यूमिनिस
46.केसर-क्रोकस सैटिवियस
47.काजू-एनाकार्डियम अरोमैटिकम
48.गाजर-डाकस कैरोटा
49.अदरक-जिँजिबर ऑफिसिनेल
50.फूलगोभी-ब्रासिका औलिरेशिया
51.लहसून-एलियम सेराइवन
52.बाँस-बेँबुसा स्पे
53.बाजरा-पेनिसिटम अमेरीकोनम
54.लालमिर्च-कैप्सियम एनुअम
55.कालीमिर्च-पाइपर नाइग्रम
56.बादाम-प्रुनस अरमेनिका
57.इलायची-इलिटेरिया कोर्डेमोमम
58.केला-म्यूजा पेराडिसिएका
59.मूली -रेफेनस सैटाइविस
60.जामुन-शायजियम क्यूमिनी
जीववैज्ञानिक वर्गीकरण
जीव जगत के समुचित अध्ययन के लिये आवश्यक है कि विभिन्न गुणधर्म एवं विशेषताओं वाले जीव अलग-अलग श्रेणियों में रखे जाऐं। इस तरह से जन्तुओं एवं पादपों के वर्गीकरण को वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान अंग्रेजी में वर्गिकी के लिये दो शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं - टैक्सोनॉमी (Taxonomy) तथा सिस्टेमैटिक्स (Systematics)। कार्ल लीनियस ने 1735 ई. में सिस्तेमा नातूरै (Systema Naturae) नामक पुस्तक सिस्टेमैटिक्स शब्द के आधार पर लिखी थी।[1] आधुनिक युग में ये दोनों शब्द पादप और जंतु वर्गीकरण के लिए प्रयुक्त होते हैं।
वर्गिकी का कार्य आकारिकी, आकृतिविज्ञान (morphology) क्रियाविज्ञान (physiology), परिस्थितिकी (ecology) और आनुवंशिकी (genetics) पर आधारित है। अन्य वैज्ञानिक अनुशासनों की तरह यह भी अनेक प्रकार के ज्ञान, मत और प्रणालियों का सश्लेषण है, जिसका प्रयोग वर्गीकरण के क्षेत्र में होता है। जीवविज्ञान संबंधी किसी प्रकार के विश्लेषण का प्रथम सोपान है सुव्यवस्थित ढंग से उसका वर्गीकरण; अत: पादप, या जंतु के अध्ययन का पहला कदम है उसका नामकरण, वर्गीकरण और तब वर्णन।
जन्तु वर्गिकी
जैविक वर्गीकरण का इतिहास
आधुनिक वर्गीकरण
पारजैविक वर्गिकी
आधुनिक वर्गीकरण
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
जन्तु वर्गिकी
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वर्गिकी का मूल निर्माण आकारकी या आकृतिविज्ञान (morphology), क्रियाविज्ञान (physiology), परिस्थितिकी (ecology) और आनुवंशिकी ((genetics) पर आधारित है। अन्य वैज्ञानिक अनुशासनों की तरह यह भी अनेक प्रकार के ज्ञान, मत और प्रणालियों का संश्लेषण है, जिसका प्रयोग वर्गीकरण के क्षेत्र में होता है। जीवविज्ञान संबंधी किसी प्रकार के विश्लेषण का प्रथम सोपान है सुव्यवस्थित ढंग से उसका वर्गीकरण; अत: पादप, या जंतु के अध्ययन का पहला कदम है उसका नामकरण, वर्गीकरण और तब वर्णन।
आजकल पादप की चार लाख जातियों से अधिक जातियाँ ज्ञात हैं। ये लिनीअस के समय से साठगुनी अधिक हैं। प्रति वर्ष लगभग 4,750 नई जातियों का वर्णन होता है। समानार्थक (synonyms) और उपजातियों (subspecies) को मिलाकर केवल फ़ेनरोगैम्स (Phanerogams) और क्रिप्टौगैम्स (cryptogams) नामक पादप समूहों में 1763 से 1942 ई. तक दस लाख से भी अधिक नाम दिए जा चुके हैं।
वर्णित जंतुओं की जातियाँ गिनती में पादप जातियों से कहीं अधिक हैं। उपजातियों को मिलाकर 20 लाख से अधिक जंतुजातियों के नाम ज्ञात हैं और प्रति वर्ष लगभग 10,000 नई जातियों का वर्णन होता है।
जैविक वर्गीकरण का इतिहास
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वर्गीकरण विज्ञान का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव का इतिहास। समझ बूझ होते ही मनुष्य ने आस पास के जंतुओं और पौधों को पहचानना तथा उनको नाम देना प्रारंभ किया।
ग्रीस(ग्रीस) के अनेक प्राचीन विद्वान, विशेषत: हिपॉक्रेटीज (Hippocrates, 46-377 ई. पू.) ने और डिमॉक्रिटस (Democritus, 465-370 ई. पू.), ने अपने अध्ययन में जंतुओं को स्थान दिया है। स्पष्ट रूप से अरस्तू (Aristotle, 384-322 ई. पू.) ने अपने समय के ज्ञान का उपयुक्त संकलन किया है। ऐरिस्टॉटल के उल्लेख में वर्गीकरण का प्रारंभ दिखाई पड़ता है। इनका मत है कि जंतु अपने रहन सहन के ढंग, स्वभाव और शारीरिक आकार के आधार पर पृथक् किए जा सकते हैं। इन्होंने पक्षी, मछली, ह्वेल, कीट आदि जंतुसमूहों का उल्लेख किया है और छोटे समूहों के लिए कोलियॉप्टेरा (Coleoptera) और डिप्टेरा (Diptera) आदि शब्दों का भी प्रयोग किया है। इस समय के वनस्पतिविद् अरस्तू की विचारधारा से आगे थे। उन्होंने स्थानीय पौधों का सफल वर्गीकरण कर रखा था। ब्रनफेल्स (Brunfels, 1530 ई.) और बौहिन (Bauhim, 1623 ई.) पादप वर्गीकरण को सफल रास्ते पर लानेवाले वैज्ञानिक थे, परंतु जंतुओं का वर्गीकरण करनेवाले इस समय के विशेषज्ञ अब भी अरस्तू की विचारधारा के अंतर्गत कार्य कर रहे थे।
जन्विज्ञान विशेषज्ञों में जॉन रे (John Ray, 1627-1705 ई.) प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने जाति (species) और वंश (genus) में अंतर स्पष्ट किया और प्राचीन वैज्ञानिकों में ये प्रथम थे, जिन्होंने उच्चतर प्राकृतिक वर्गीकरण किया। इनका प्रभाव स्वीडन के रहनेवाले महान प्रकृतिवादी कार्ल लीनियस (1707-1778) पर पड़ा। लिनीअस ने इस दिशा में अद्वितीय कार्य किया। इसलिए इन्हें वर्गीकरण विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है।
अठारहवीं शताब्दी में विकासवाद के विचारों का प्रभाव वर्गीकरण विज्ञान पर पड़ा। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में यह प्रभाव अपने शिखर पर पहुंच गया। इसी समय दूरवर्ती स्थानों के जंतुओं में वर्गीकरण विशेषज्ञों की गंभीर रुचि हो गई थी। वे दूर देशों के जानवरों के विषय में जानकारी करना चाहते थे और परिचित जानवरों से उनका संबंध करना चाहते थे। इसलिए इस समय लंबी जलयात्राएँ हुई। दूर दूर के जानवरों का अध्ययन किया गया और उनके वंश तथा कुटुंब आदि का अध्ययन किया गया। एक ऐसी यात्रा बीग्ले नामक जहाज पर हुई थी जिसमें चार्ल्स डार्विन नामक प्रकृतिवादी भी सम्मिलित था। इस काल में वर्गीकरण विज्ञान में बड़ी प्रगति की गई और वर्गीकरण में अनेक नई जातियाँ, वंश और कुटुंब जोड़े गए।
बीसवीं शताब्दी में किया गया वर्गीकरण विज्ञान की विशेषता है। हक्सलि (Huxely, 1940 ई.) के विचारानुसार आधुनिक वर्गीकरण विज्ञान भूगोल, पारिस्थितिकी (ecology), कोशिकी (cytology) और आनुवंशिकी (genetics) आदि का संश्लेषण है। पहले समय में वर्गीकरण विज्ञान का आधार था "प्रकार" (type), जिसको आकृतिक लक्षणों की सहायता से उपस्थित करते थे। आधुनिक वर्गीकरण विज्ञान में जातियों का वर्णन पूर्णतया आकृतिक लक्षणों पर आधारित नहीं है, जैविक है, जिसकी वजह से भौगोलिक, पारिस्थितिक, जननीय तथा कुछ अन्य लक्षणों पर भी ध्यान दिया जाता है। प्ररूप संकल्पना (type concept) श्रेणियों की स्थिरता को विस्तृत रूप देती है, एक दूसरे के बीच अंतर को बढ़ाती है जननीय तथा कुछ अन्य लक्षणों पर भी ध्यान दिया जाता है। प्ररूप संकल्पना (type concept) श्रेणियों की स्थिरता को विस्तृत रूप देती है, एक दूसरे के बीच अंतर को बढ़ाती है और परिवर्तनशीलता को कम करती है। इसके विपरीत है जनसंख्या संकल्पना (population concept), जिसके अनुसार स्पीशीज़ परिवर्तनशील जनसंख्या से बनी है और स्थिर नहीं है।
उत्क्रम से विशेष समूहों अथवा श्रेणियों की परिभाषा करना वर्गीकरण का निश्चित ढंग है। लिनीअस ने ऐसी पाँच श्रेणियाँ बनाई थीं :
क्लासिस (Classic) अथवा वर्ग, गण (Ordo), जीनस (Grnus) अथवा वंश, स्पीशीज़ (Species) अथवा जाति और वैराइटाज़ (Varietas) अथवा प्रजाति।
प्रत्येक श्रेणी में एक अथवा एक से अधिक नीचे स्तर के समूह सम्मिलित होते हैं और वे निम्न श्रेणी बनाते हैं। इसी तरह प्रत्येक क्रमिक श्रेणी एक अथवा एक से अधिक ऊँची श्रेणी से संबंधित होती है। ये श्रेणियाँ प्राकृतिक प्रभेद कम करके एक व्यापक प्रणाली बना देती हैं।
ज्ञान के विकास के साथ साथ इन श्रेणियों की संख्या बढ़ती गई। जगत् और वर्ग के बीच संघ और गण (Order) तथा वंश के बीच में कुटुंब नामक श्रेणियाँ जोड़ी गई। लिनीअस के विचारानुसार प्रजाति (Varietas) एक वैकल्पिक श्रेणी है, जिसके अंतर्गत भौगोलिक अथवा व्यक्तिगत विभिन्नता आती है। इस तरह अब निम्न सात श्रेणियाँ हो गई हैं :
जगत् (Kingdom), संघ (Phylum), वर्ग (Class), गण (Order), कुटुंब (Family) वंश (Genus) और जाति (Species)।
वर्गीकरण की और अधिक परिशुद्ध व्याख्या के लिए इन श्रेणियों को भी विभाजित कर अन्य श्रेणियाँ बनाई गई हैं। अधिकतर मूल नाम के पहले अधि (Super) अथवा उप (Sub) उपसर्गों (Prefixes) को जोड़कर इन श्रेणियों का नामकरण किया गया है। उदाहरणार्थ, अधिगण (super order) और उपगण (suborder) आदि। ऊँची श्रेणियों के लिए कई नाम प्रस्तावित किए गए, परंतु सामान्य प्रयोग में वे नहीं आते। केवल आदिम जाति (tribe) का कुटुंब और वंश के बीच प्रयोग किया जाता है। कुछ लेखकों ने, जैसे सिंपसन, (Sympson, 1945 ई.) ने गण और वर्ग के बीच सहगण (Cohort) नाम का प्रयोग किया है।
इस तरह साधारण तौर से काम लाई जानेवाली श्रेणियों की संख्या इस समय निम्नलिखित है :
जगत् (Kingdom), संघ (Phylum), उपसंघ (Subphylum), अधिवर्ग (Superclass), वर्ग (Class) उपवर्ग (Subclass), सहगण या कोहॉर्ट (Cohort), अधिगण (Superorder), गण (Order), उपगण (Suborder), अधिकुल (Superfamily), कुल (Family), उपकुल (Subfamily), आदिम जाति (Tribe), वंश (Genus), उपवंश (Subgenus), जाति (Species) तथा उपजाति
2 kingdoms 3 kingdoms 2 empires 4 kingdoms 5 kingdoms 3 domains 6 kingdoms
(not treated) Protista Prokaryota Monera Monera Bacteria Bacteria
Archaea
Eukaryota Protoctista Protista Eucarya Protozoa
Chromista
Vegetabilia Plantae Plantae Plantae Plantae
Fungi Fungi
Animalia Animalia Animalia Animalia Animalia
वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रणाली के विभिन्न स्तर।
वर्तमान समय में 'अन्तर्राष्ट्रीय नामकरण कोड' द्वारा जीवों के वर्गीकरण की सात श्रेणियाँ (Ranks) पारिभाषित की गयी हैं। ये श्रेणियाँ हैं- जगत (kingdom), संघ (phylum/division), वर्ग (class), गण (order), कुल (family), वंश (genus) तथा जाति (species). हाल के वर्षों में डोमेन (Domain) नामक एक और स्तर प्रचलन में आया है जो 'जगत' के रखा ऊपर है। किन्तु इसे अभी तक कोडों में स्वीकृत नहीं किया गया है। सात मुख्य श्रेणियों के बीच में भी श्रेणियाँ बनाई जा सकती हैं जिसके लिये 'अधि-' (super-), 'उप-' (sub-) या 'इन्फ्रा-' (infra-) उपसर्गों का प्रयोग करना चाहिये। इसके अलावा जन्तुविज्ञान तथा वनस्पति विज्ञान के वर्गीकरण की श्रेणियों में मामूली अन्तर भी है (जैसे - 'आदिम जाति' (ट्राइब))।
इस समय साधारण तौर से काम लाई जानेवाली श्रेणियाँ निम्नलिखित है :
जगत (Kingdom),
संघ (Phylum),
उपसंघ (Subphylum),
अधिवर्ग (Superclass),
वर्ग (Class)
उपवर्ग (Subclass),
सहगण या कोहऑर्ट (Cohort),
अधिगण (Superorder),
गण (order),
उपगण (Suborder),
अधिकुल (Superfamily),
कुल (Family),
उपकुल (Subfamily),
आदिम जाति (Tribe),
वंश (Genus),
उपवंश (Subgenus),
जाति (Species) तथा
उपजाति (Subspecies)
पारजैविक वर्गिकी
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परजीवियों में वृहत भिन्नता, जीव वैज्ञानिकों के लिये उनका वर्णन करना तथा उन्हें नामावली बद्ध करना एक बड़ी चुनौती उपस्थित करती है। हाल ही में हुए विभिन्न जातियों को पृथक करने, पहचानने व विभिन्न टैक्सोनॉमी पैमानों पर उनके विभिन्न समूहों के बीच संबंध ढूंढने हेतु डी.एन.ए. प्रयोग पारजैवज्ञों के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण व सहायक रहे हैं।
आधुनिक वर्गीकरण
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कुल 5 प्रकार से
जनक -R H रिहटेकर
1.मोनेरा 2.प्रॉटिस्टा 3.फंजाई 4.प्लांटी 5.एनिमिलिया
प्रॉटिस्टा को 5 भागो मे बांटा गया है
a.क्राइसोफाइटा b.dainFegilte c.युगलिना d.अपवंक कवक e.प्रोटोजोवा
प्रोटोजोवा को 4 भागो मे बांटा गया है
अमीबीय प्रोटोजोवा ;कसाभिय प्रोटोजोवा ;िफरोजोआ ;पक्षमीबीए प्रोटोजोव
इन्हें भी देखें
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प्राणियों का वर्गीकरण
पादप वर्गीकरण
आईयूपीएसी नामकरण - रसायनों के नाम की वैज्ञानिक पद्धति
द्विपद नामकरण
वानस्पतिक नाम
कार्ल लिनियस
वर्गिकी (सामान्य)
बाहरी कड़ियाँ
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जन्तु-जगत् के वर्गीकरण का संक्षिप्त इतिहास
Tree of Life Web Project - explore complete phylogenetic tree interactively
Tree of Life illustration - A modern illustration of the complete tree of life.
Science Magazine Tree of Life - Sample tree of life from Science journal.
Science journal issue - Issue devoted to the tree of life.
[1]-Report on recent paper on "pruning" of the tree of life model.
The Tree of Life by Garrett Neske, The Wolfram Demonstrations Project: "presents an interactive tree of life that allows you to explore the relationships between many different kinds of organisms by allowing you to select an organism and visualize the clade to which it belongs."
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